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Wheat crop in cold waves

गेहूं की फसल में ठंड से बढ़ता उत्पादन:किसानों के लिए वरदान

क्या गेहूं की फसल के लिए ठंड वरदान है ?

आजकल, जब पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी के चलते मैदानी इलाकों में भी ठंड लगातार बढ़ती जा रही है, ठंड से जहां आम जनजीवन प्रभावित हो रहा है, वहीं किसानों के लिए यह एक बड़ी खुशखबरी है। गेहूं की फसल के लिए ठंड वरदान साबित हो रही है, जिससे किसानों को अधिक पैदावार की उम्मीद हो रही है। इसके साथ ही, राष्ट्रीय गेहूं एवं जी संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने भी गेहूं के बंपर पैदावार की उम्मीद जताई है। इस लेख में, हम जानेंगे कि कैसे ठंड और कुछ अन्य उपायों से गेहूं की फसल को बनाया जा सकता है और उससे किसानों को कैसे फायदा हो सकता है।

गेहूं के लिए ठंड वरदान

पहले ही बता दें कि गेहूं की फसल के लिए ठंड वरदान साबित हो रही है। ठंड से जुड़ी जानकारी के अनुसार, गेहूं के खेत में ठंड बढ़ने से फसल की पैदावार में भी वृद्धि हो सकती है। यहां वैज्ञानिकों की माने तो, ठंड जितनी बढ़ेगी, गेहूं की पैदावार उतनी ही अच्छी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ठंड ने किसानों को नई उम्मीद दी है और इससे उनकी आजीविका में सुधार हो सकता है।

राष्ट्रीय गेहूं एवं जी संस्थान करनाल की राय

राष्ट्रीय गेहूं एवं जी संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस बार गेहूं के बंपर पैदावार की उम्मीद जताई जा रही है। केंद्र सरकार ने इस बार 114 मिलियन टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जिसको लेकर कृषि वैज्ञानिक पूरी तरह आशान्वित हैं। भारतीय गेहूं एवं जो अनुसंधान केंद्र करनाल के निदेशक ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि भारत के उत्तर, पूर्व और मध्य इलकों में बारिश का अनुमान है, और इससे गेहूं की पैदावार में वृद्धि हो सकती है।

Wheat crop in cold waves
Wheat crop in winter

किसानों के लिए उपयुक्त उपाय

गेहूं की फसल के लिए ठंड को और भी प्रभावी बनाने के लिए किसानों को ध्यानपूर्वक कुछ उपायों का पालन करना चाहिए।

सिंचाई से पहले यूरिया डालें

नाइट्रोजन की खुराक का प्रयोग बुआई के 40-45 दिन बाद तक पूरा कर लेना चाहिए। बेहतर परिणाम के लिए सिंचाई से ठीक पहले यूरिया डालें।

सिंचाई के साथ उर्वरकों का सही समय पर उपयोग

गेहूं के खेत में संकरी, चौड़ी पत्ती वाले दोनों खरपतवार हों तो पहली सिंचाई से पहले या सिचांई के 10-15 दिन बाद 120 124 लीटर पानी में सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 डब्ल्यूजी 13.5 ग्राम, एकड़ या सल्फोसल्फ्यूरॉन, मेटासल्फ्यूरॉन 16 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 125 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें।

कीट प्रबंधन

हाथ से संक्रमित कल्लों का हमला: संक्रमित कल्लों को हाथ से चुनने और उन्हें नष्ट करने से छेदक का हमला कम हो जाता है।

नाइट्रोजन उर्वरकों का सही समय पर उपयोग: संक्रमण से बचने के लिए नाइट्रोजन उर्वरकों को विभाजित खुराकों में उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

अधिक प्रकोप के लिए क्विनालफॉस का उपयोग: यदि प्रकोप अधिक हो तो 1000 मिलीलीटर क्विनालफॉस 25 प्रतिशत, इसी को 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर मिलाकर छिड़काव करें।

अगेती गेहूं की फसल के लिए उपाय

अगेती गेहूं की फसल के नियंत्रण के लिए विकास नियामकों का उपयोग करें। इसके लिए ग्रोथ रेगुलेटर क्लोरमेक्वाट कलोराइड सीसीसी @0.2%, टेबुकोनाजोल 250 ईसी @ 0.1% वाणिज्यिक उत्पाद खुराक के टैंक मिश्रण के रूप में दो स्प्रे नोड (बुआई के 50-50 दिन बाद) ध्वज पत्ती (बुआई के 75-85 दिन बाद करें। किसानों ने अगेती गेहूं पर पहला छिड़काव नहीं किया है, वे बुआई के 70- 80 दिन बाद केवल एक ही छिड़काव कर सकते हैं।

गेहूं की फसल के लिए ठंड को वरदान माना जा रहा है, और उसे और भी प्रभावी बनाने के लिए किसानों को उपयुक्त उपायों का पालन करना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि गेहूं की पैदावार में वृद्धि हो, और किसानों को अच्छा मुनाफा हो।

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Soil Importance for farming

खेती का रहस्य: मिट्टी के तत्वों का महत्व और उनका संतुलन

मिट्टी के तत्वों को जानकर ही करें खेती

क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी शानदार खेती के पीछे उसकी शक्ति का एक बड़ा राज हो सकता है? क्या आपने यह सोचा है कि वृक्ष, फसल और फूल कैसे उच्च गुणवत्ता और अद्वितीय रसों से भरे हो सकते हैं? इस रहस्य का हल है मिट्टी के तत्वों की जानकारी। हमारे किसान भाइयों के लिए एक सवाल – क्या आप जानते हैं कि आपकी खेती की जद्दोजहद में मिट्टी के तत्वों का महत्व क्या है? आइए, हम इस रहस्यमय विषय पर चर्चा करें और सीखें कि मिट्टी को सही ढंग से संतुलित करके हम कैसे प्रतिष्ठानपूर्ण और उपजाऊ फसलों का उत्पादन कर सकते हैं।

मिट्टी की जाँच कराना आवश्यक है

किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम मिट्टी की जाँच है। मिट्टी की गुणवत्ता को मापने के लिए विभिन्न प्रक्रियाएं होती हैं, जैसे कि फिजिकल टेक्स्चर, केमिकल टेक्स्चर, और बायोलॉजिकल टेक्स्चर। इससे हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कौन-कौन से तत्व मिट्टी में मौजूद हैं और उनकी मात्रा क्या है।

आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलन जरूरी

मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों का संतुलन होना बहुत आवश्यक है। विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलों के लिए अलग होती है। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाशियम, सल्फर, आदि ये सभी पोषक तत्व मिट्टी में होने चाहिए ताकि पौधों को सही मात्रा में पोषण मिल सके।

Soil Importance for farming
Soil Importance for farming

मुख्य पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन

मुख्य पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, और ऑक्सीजन पौधों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये तत्व प्राय: वायु और पानी से प्राप्त होते हैं। विशेषकर, कार्बन द्वारा पौधे को विकसित होने के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है जबकि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का संयोजन पानी को पौधों के लिए उपयुक्त बनाता है।

शेष 14 पोषक तत्त्वों के लिए भूमि पर निर्भर

शेष 14 पोषक तत्व भी विभिन्न पौधों के लिए आवश्यक होते हैं और इनका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इनमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, बोरॉन, मैंगनीज, आदि शामिल हैं। यह सभी तत्व पौधों के स्वस्थ विकास के लिए आवश्यक हैं और इनकी कमी से पौधों में रोग और प्रदर्शन में कमी हो सकती है।

मिट्टी के तत्वों का सही संतुलन

यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि मिट्टी में विभिन्न तत्वों का सही संतुलन हो। सभी पोषक तत्वों की सही मात्रा में होना बहुत आवश्यक है ताकि पौधों को सभी आवश्यक ऊर्जा और पोषण मिल सके। मिट्टी की खेती में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें मिट्टी के संतुलित तत्वों की सच्चाई समझनी चाहिए और उन्हें सही ढंग से प्रबंधित करना चाहिए।

मिट्टी का उपयोग कैसे करें

जल संचारण की निगरानी: मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को सही मात्रा में सुनिश्चित करने के लिए सही जल संचारण की निगरानी रखना चाहिए।

जल संचारण का अनुकूलन: फसलों की अच्छी उत्पादन के लिए जल संचारण का सही अनुकूलन बहुत महत्वपूर्ण है।

कमीजो और पोषण की दृष्टि से समृद्धि: मिट्टी में कमीजो का अनुकूलन करते समय और पौधों को सही पोषण प्रदान करते समय सावधानी बरतना चाहिए।

उर्वरकों का सही समय पर प्रयोग: फसलों की विकास प्रक्रिया में उर्वरकों का सही समय पर प्रयोग करना चाहिए।

निष्कर्ष

मिट्टी के तत्वों को समझना और सही संतुलन में रखना हर किसान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर हम अपनी खेती के लिए मिट्टी को ठीक से नहीं देखेंगे तो हमारी फसलों का उत्पादन कभी भी अपर्याप्त हो सकता है। इसलिए, हर किसान को अपनी मिट्टी की जाँच कराने और उसे सही ढंग से प्रबंधित करने का अधिकार होना चाहिए। इससे हम न केवल अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं बल्कि फसलों की गुणवत्ता भी बनाए रख सकते हैं। इससे किसान भाइयों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार,अधिक गुणवत्ता और उत्पादन को हासिल कर सकता है, जिससे उन्हें अपार सफलता मिलेगी।

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Organic Farming motive

खेती की नई दिशा: प्राकृतिक तरीकों से शक्तिशाली खेती

प्राकृतिक खेती: क्या यह है और क्यों है यह अहम?

आपकी खेतों का संरक्षण करने के लिए क्या आपने कभी प्राकृतिक खेती का विचार किया है?

आज के युग में, जहाँ तकनीकी तरीकों का प्रयोग हो रहा है, क्या हम नहीं भूल रहे हैं कि हमारी मिट्टी हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है? इस लेख में हम जानेंगे कि प्राकृतिक खेती क्या है और इसके क्या उद्देश्य हैं, साथ ही किस तरह से यह किसानों को लाभ पहुंचा सकती है.

प्राकृतिक खेती का उद्देश्य

खेती की लागत कम करके अधिक लाभ लेना

प्राकृतिक खेती का पहला उद्देश्य है खेती की लागत को कम करके किसानों को अधिक लाभ पहुंचाना। रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बजाय, प्राकृतिक खेती में खाद, जैव उर्वरा, और जैविक खेती के सिद्धांतों का प्रयोग होता है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है और लाभ में भी वृद्धि होती है।

मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना

प्राकृतिक खेती से मिट्टी को उर्वरा बनाए रखने में सहायक होता है। जैव खाद, जैव उर्वरा, और अन्य प्राकृतिक तत्वों का प्रयोग करके मिट्टी को सुषमा देने का कारण होता है, जिससे फसलों का प्रदर्शन बेहतर होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है।

Organic Farming motive
Organic Farming motive

रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाना

प्राकृतिक खेती में हम रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग को कम करते हैं या उससे पूरी तरह से बचत करते हैं। इससे हम न केवल अपने उत्पादों को स्वस्थ बनाए रखते हैं बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

कम पानी व सिंचाई से अधिक उत्पादन लेना

प्राकृतिक खेती की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें कम पानी और सिंचाई का उपयोग होता है, लेकिन उत्पादन में वृद्धि होती है। यह आपकी खेती को सुस्ती देने में मदद करता है और साथ ही पानी की बचत करता है।

प्राकृतिक खेती में सतत पोषणीय विकास

प्राकृतिक खेती में सतत पोषणीय विकास के लिए हमें अपनी खेती को सावधानीपूर्वक परिचालित करना होता है। इसमें विभिन्न तकनीकियों का प्रयोग, बीजों का सही चयन, और सुरक्षित पोषणीय तत्वों का प्रयोग शामिल है।

प्राकृतिक खेती के लिए उपयुक्त तकनीकियाँ

प्राकृतिक खेती में विभिन्न तकनीकियों का प्रयोग होता है जो खेती को सुरक्षित और उत्पादकर होने में मदद करती हैं। उचित जल संचारण, खेतों की सही तैयारी, और जैविक उर्वरा स्रोतों का प्रयोग इसमें शामिल हैं।

बीजों का सही चयन – 
प्राकृतिक खेती में सफलता के लिए सही बीजों का चयन करना महत्वपूर्ण है। स्थानीय बीजों का प्रयोग करना, जो क्षेत्र के अनुकूल हों, और जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करें।

सुरक्षित पोषणीय तत्वों का प्रयोग –
प्राकृतिक खेती में हम सुरक्षित पोषणीय तत्वों का प्रयोग करके खेती को सुरक्षित बना सकते हैं। जैसे कि जैविक खाद, जीवाणु रक्षक, और संरक्षित बीज।

"खेती वह कला है जिसमें मिट्टी को आपसी जुड़ाव से सजीव किया जाता है।" किसानों के लिए यह एक प्रेरणा सूत्र है जो प्राकृतिक खेती को अपनाने की प्रेरित करता है। यह कला है जिसमें किसान अपनी मेहनत के बल पर मिट्टी को सजीव बनाता है और स्वस्थ और सुरक्षित खाद्य का उत्पादन करता है।

संक्षेप

इस लेख में हमने देखा कि प्राकृतिक खेती का उद्देश्य खेती की लागत को कम करना और अधिक लाभ प्राप्त करना है, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना है, रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाना है, और कम पानी व सिंचाई से अधिक उत्पादन प्राप्त करना है।

प्राकृतिक खेती हमें हमारे पर्यावरण की रक्षा करने का एक शानदार तरीका प्रदान करती है, साथ ही किसानों को सस्ते तरीके से अधिक लाभ प्रदान करती है। इसके लाभों को देखते हुए, किसानों को इस प्रकार की खेती में रुचि लेना चाहिए ताकि हम एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकें।

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छिंदवाड़ा कृषि उपज मंडी में आज से ई-मंडी योजना की शुरुआत

क्या आपने सुना है कि आज से एक नई योजना की शुरुआत हो रही है?

 जिसमें पहले चरण में कम आवक वाली किसान उपजों पर लागू होगी? हाँ, राज्य कृषि विपणन बोर्ड ने अ वर्ग की श्रेणी में आने वाली मंडियों के लिए ई-मंडी योजना को लागू किया है। इसके तहत, छिंदवाड़ा में भी कृषि उपज मंडी में कुछ नई क्रियाएं शुरू हो रही हैं।

ई-मंडी योजना: किसानों के लाभ का एक नया क्षेत्र

इस योजना के अंतर्गत, सोयाबीन, चना, तुअर, मूंग, उड़द, और अन्य कम आवक वाली उपजों की नीलामी तक की प्रक्रिया ई-मंडी के माध्यम से होगी। 17 जनवरी से इस प्रक्रिया को कृषि उपज मंडी में लागू किया जा रहा है।

ऑनलाइन प्रवेश पर्ची

इसमें ई प्रवेश पर्ची के माध्यम से होगी शुरुआत, जिसमें प्रवेश द्वार में कर्मचारी द्वारा किसान के नाम, पता, मोबाइल नंबर, कृषि उपज का नाम, मात्रा आदि की ऑनलाइन प्रवेश पर्ची जारी की जाएगी। किसान घर बैठे भी ऑनलाइन प्रवेश पर्ची बना सकेंगे।

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ई- अनुबंध: नीलामी से लेकर भाव तक का सफर

ई- अनुबंध में पीओएस मशीन में किसान की ऑनलाइन प्रवेश पर्ची का नंबर दर्ज करने के साथ नीलामी प्रक्रिया शुरू होगी। बोली में उच्चतम भाव से संतुष्ट होने पर भाव एवं क्रेता फर्म का मान नंबर दर्ज कर सुरक्षित कर दिया जाएगा। ऑनलाइन अनुबंध जारी करने के बाद, एक पर्ची किसान और एक पर्ची क्रेता फर्म को दी जाएगी। इस प्रकार ई तौल और ईभुगतान पत्रक भी जारी होगा।

ऑनलाइन व्यवसाय: ईमंडी एप का उपयोग

इसमें क्रेता व्यापारी या फर्म ईमंडी एप पर लॉगिन करने पर ऑनलाइन अनुबंध तौल आदि की जानकारी दिख जाएगी। यह नई पहल में किसानों को स्वतंत्रता और सुरक्षा का अहसास कराएगा और उन्हें व्यापारिक प्रक्रियाओं में और भी सुधार करने का अवसर देगा।

नए योजना से होने वाले लाभ

इस नई योजना के माध्यम से होने वाले लाभों की बात करते हुए, किसानों को ऑनलाइन प्रक्रिया का सीधा और सुरक्षित लाभ होगा। यह उन्हें अधिक बाजार एक्सेस और उच्चतम मूल्य प्राप्त करने में मदद करेगा। साथ ही, ऑनलाइन प्रवेश पर्ची के माध्यम से तत्परता को बढ़ावा मिलेगा और व्यापारिक प्रक्रियाओं में भी सुधार होगा।

समाप्ति की ओर: नई योजना का नया दौर
इस प्रयास से, हम एक नई दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं जो किसानों को बेहतर व्यवसायिक अवसर प्रदान करने के लिए है। यह नई योजना न केवल ऑनलाइन प्रक्रिया को सुगम और सुरक्षित बनाएगी, बल्कि कृषि उपजों को बेहतर बाजार तक पहुंचाने में भी सहारा प्रदान करेगी।

इस प्रकार, आज से शुरू हो रही नई ई-मंडी योजना के माध्यम से किसानों को व्यापारिक प्रक्रियाओं में नई दिशा में कदम बढ़ाने का एक नया मौका मिल रहा है। इस नए पहल के साथ हम आत्मनिर्भर और सुरक्षित कृषि सेक्टर की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, जिससे हमारे किसान भाइयों को और भी सुविधाएं मिलेंगी। इस योजना के माध्यम से होने वाले सकारात्मक परिणामों की प्रतीक्षा की जा रही है, जो हमारे कृषि समाज को एक नए युग में ले जाएगी।

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किसानों का दोस्त: ड्रोन कृषि क्षेत्र में बदल रहा है खेती का तरीका

क्या आपने कभी ये सोचा है कि कैसे तकनीकी उनोवेशन किसानों के जीवन को सरल और सुरक्षित बना सकता है?

आज के युग में, तकनीकी सुधार ने हर क्षेत्र में अपना प्रभाव दिखाया है, और इसमें कृषि क्षेत्र शामिल नहीं है। इस ब्लॉग में, हम बात करेंगे कि कैसे ड्रोन किसान भाइयों का काम आसान कर रहा है|

समय और श्रम की बचत

किसानों का काम अत्यंत मुश्किल और मेहनतभरा होता है। इसमें खेतों की जाँच, बुआई, और पूरे प्रक्रिया में कई घंटे लगते हैं। यहाँ ड्रोन का उपयोग आता है, जो समय और श्रम की बचत करने में मदद करता है।

ड्रोन को किसानों के लिए एक अद्वितीय सहायक बना जा सकता है जो खेतों की सुरक्षा और निगरानी करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। ड्रोन विशेषज्ञता से खेतों का सूचना संग्रहित करने में सक्षम है और इससे किसानों को समय की बचत होती है, जिसे वे अन्य कृषि गतिविधियों में लगा सकते हैं।

फसल नुकसान के आकलन में सहायक

अक्सर होता है कि अचानकी बर्फबारी, बारिश या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों में क्षति हो जाती है। ड्रोन यहाँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह फसल नुकसान को तेजी से और सटीकता से आकलन करने में मदद कर सकता है।

ड्रोन विमोचन से पहले और बाद में खेतों की ऊचाई से तस्वीरें लेता है जो किसानों को फसल की स्थिति को समझने में मदद करती हैं। इससे वे त्वरित रूप से नुकसान का मूल्यांकन कर सकते हैं और उचित उपायों का निर्धारण कर सकते हैं।

Drone performing spray on crop
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खेत एवं फसल स्वास्थ्य की करे निगरानी

ड्रोन को विभिन्न सेंसर्स के साथ लैस किया जाता है जो खेतों और फसलों की स्वास्थ्य की सत्तारूप से निगरानी कर सकते हैं। इससे किसानों को अग्रणी संकेत मिलते हैं जो उन्हें उचित समय पर क्रियावली करने की अनुमति देते हैं।

फसलों की स्वास्थ्य की निगरानी में ड्रोन आकलन और सत्तारूप से विवेचन करता है। यह फसलों में किसी भी प्रकार की प्रदूषण, बीमारी या पोषण की कमी को पहचानने में सहायक होता है। समय पर इस प्रकार की निगरानी से किसान उचित उपायों को अपना सकते हैं और फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।

खरपतवार एवं कीटों से प्रभावित क्षेत्रों का लगाए पता

ड्रोन को आधुनिक सेंसर्स से लैस किया जा सकता है जो खेतों में कीटाणु और बीमारियों की जाँच कर सकते हैं। इसके माध्यम से किसान त्वरित रूप से विनाशकारी प्रवाहों की पहचान कर सकते हैं और समय पर उपचार कर सकते हैं।

ड्रोन के सुधारित तकनीकी सुविधाएं खेतों की सुरक्षा में मदद करती हैं और फसलों को खराब होने से बचाती हैं। इससे किसानों को नुकसान से बचाने में मदद मिलती है और वे अपनी उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।

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निष्कर्ष

ड्रोन तकनीकी उनोवेशन की एक उदाहरण है जो कृषि क्षेत्र में कैसे बदलाव कर रहा है। इसका उपयोग किसानों को उनके काम को आसान बनाने में मदद करता है, समय और श्रम की बचत करता है, और फसलों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इस तकनीकी युग में, हमें इन नई तकनीकों का सही तरीके से उपयोग करने की आवश्यकता है ताकि हम अपने कृषकों को सबसे अच्छा समर्थन दे सकें। ड्रोन किसान भाइयों का काम सही दिशा में बदल रहा है और हमें इस तकनीक की सदुपयोगिता को समझकर उनका समर्थन करना चाहिए। कृषि से जुड़े नए और उनोवेशनी उपायों के लिए सरकार, औद्योगिक सेक्टर, और शिक्षा तंत्र एक साथ काम करके इस क्षेत्र में और भी प्रगति कर सकते हैं।

अगर हम इन तकनीकी सुधारों को सही तरीके से अपनाते हैं, तो हमारे किसान भाइयों को न केवल आसानी से काम करने का मौका मिलेगा, बल्कि उनकी आय भी बढ़ेगी। इससे न केवल गाँवों का विकास होगा, बल्कि पूरे देश की कृषि उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी।

संक्षेप

इस ब्लॉग में हमने देखा कि कैसे ड्रोन बनाए किसान भाइयों का काम आसान कर रहे हैं। समय और श्रम की बचत, फसल नुकसान के आकलन में सहायक, खेत और फसल स्वास्थ्य की निगरानी, और खरपतवार एवं कीटों से प्रभावित क्षेत्रों का लगाए पता – ये सभी क्षेत्र ड्रोन के उपयोग से किसानों को बेहतर समर्थन प्रदान करते हैं।

इस नई तकनीकी युग में हमें तकनीकी उनोवेशनों का सही तरीके से उपयोग करके कृषि क्षेत्र को सुधारने में जुटना चाहिए। समृद्धि के लिए हमें सभी स्तरों पर मिलकर काम करना होगा ताकि हमारे किसान भाइयों को बेहतर और सुरक्षित जीवन जीने में मदद मिले।

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चेपा से कैसे बचाएं गेहूं व जौ की फसल को

क्या आप जानते हैं गेहूं और जौ के खेतों में चेपा (अल) से बचाव कैसे किया जा सकता है?

खेती में एक महत्वपूर्ण सवाल आता है – कैसे बचा जा सकता है गेहूं और जौ की फसलों को चेपा (अल) के आक्रमण से? यह कीट पौधों को कमजोर करती है और उनसे रस चूसकर उन्हें हानि पहुंचाती है। इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है? इस पोस्ट में हम इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ेंगे और गेहूं और जौ की फसलों को चेपा (अल) से बचाने के लिए कुछ उपायों पर चर्चा करेंगे।

चेपा (अल) का आक्रमण - एक समस्या जो किसानों के लिए चिंता का कारण

चेपा (अल) की फसलों में आक्रमण के कारण पौधों की कमजोरी हो जाती है, जिससे फसल का प्रदर्शन प्रभावित होता है। इस कीट के बच्चे और प्रौढ़ पत्ते पौधों के रस को चूसकर उन्हें कमजोर बना देते हैं, जिससे उनका सही रूप से विकास नहीं हो पाता।

मैलाथियान I.C - एक अचूक समाधान

इस समस्या का समाधान करने के लिए हमारे पास एक प्रमुख और प्रभावी उपाय है – मैलाथियान 50 I.C। इसे 500 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना है।

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मैलाथियान का उपयोग - विवेकपूर्णता से

मैलाथियान का उपयोग करने से पहले, हमें ध्यानपूर्वक विवेकपूर्णता से काम करना चाहिए। यह निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि हम सही मात्रा में मैलाथियान का उपयोग करें ताकि किसानों को अधिक लाभ हो सके और फसल को कोई हानि नहीं पहुंचे।

मैलाथियान के फायदे - फसल को सुरक्षित रखने के लिए

मैलाथियान का उपयोग करने से फसलों को चेपा (अल) से सुरक्षित रखा जा सकता है। यह कीटनाशक पौधों को सुरक्षित बनाए रखने में मदद करता है और उन्हें आक्रमण से बचाता है।

Tweet Department of agriculture haryana
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संबंधित सलाह - एक सफल किसान की कुंजी

मैलाथियान का उपयोग करने के अलावा, किसानों को ध्यान देने योग्य अन्य सलाहें भी मिलती हैं। उन्हें फसल की सही देखभाल और प्रबंधन के लिए संबंधित सलाह लेनी चाहिए।

निष्कर्ष - सुरक्षित फसल के लिए सही कदम

चेपा (अल) के आक्रमण के खिलाफ लड़ाई में मैलाथियान एक महत्वपूर्ण और प्रभावी उपाय है। सही मात्रा में इसका उपयोग करके किसान अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकता है और अधिक उत्पादन हासिल कर सकता है। साथ ही, उन्हें फसल की सही देखभाल के लिए संबंधित सलाहों का पालन करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

खेती में सफलता प्राप्त करने के लिए किसानों को नए और प्रभावी तकनीकों का भी सही समर्थन मिलना चाहिए। इसके लिए सरकार और कृषि विभागें उचित सुझाव और तकनीकी सहायता प्रदान कर सकती हैं। एक समृद्धि भरा कृषि क्षेत्र तभी संभव है जब हम सभी मिलकर किसानों को उनकी ज़रूरतों के हिसाब से सहारा देंगे और उन्हें नए और उन्नत तकनीकी उपायों का प्रदान करेंगे।

इस बातचीत में, हम एक सकारात्मक कदम की ओर बढ़ने के लिए साथ मिलकर किसानों की मदद कर सकते हैं और एक स्वस्थ और समृद्धि भरा कृषि समाज बना सकते हैं।

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प्याज और लहसुन में नुकसान: मौसम की मायूसी का सामना

मौसम में उतार-चढ़ाव और कोहरा: किसानों की चिंता

जानिये कैसे हाल ही में हुए मौसम के उतार-चढ़ाव और कोहरे के कारण किसानों को अपनी फसलों को बचाने के लिए कैसे जुझना पड़ रहा है?

मौसम का बदलता स्वरूप

हाल के कुछ दिनों से मौसम में लगातार उतार-चढ़ाव और कोहरा छाया हुआ है। इसका असर प्याज, लहसुन, और गेहूं की फसलों पर बड़ा है। किसान इस समय चिंता में हैं, क्योंकि इसमें उनकी मेहनत की फसलें भी खतरे में हैं।

फसलों में नुकसान के कारण

प्याज, लहसुन, और गेहूं की फसलों में हो रहे नुकसान के पीछे कई कारण हैं। मौसम में नमी की कमी और जमीन में फफूंद लगने के कारण, फसलों की ग्रोथ पर असर पड़ रहा है। कुछ स्थानों पर फसलें खराब हो गई हैं, और इससे किसानों को बड़ी चिंता है।

प्याज और लहसुन में विशेष नुकसान

इस समय, प्याज और लहसुन में सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। प्याज के पौधे पीले हो रहे हैं, और किसान लगातार दवाई का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन सुधार नहीं हो रहा है। लहसुन भी पीला पड़ रहा है, और किसान इसे बचाने के लिए सभी संभावित प्रयास कर रहे हैं।

Farmer spray Insecticides to crop
लगातार मौसम के खराब होने से प्याज लहसुन में दवाई का कर रहे छिड़काव

किसानों की चिंता

किसानों का कहना है कि पिछले 15 दिनों से मौसम फसल के लिए अनुकूल था, लेकिन उसके बाद से कोहरे की समस्या बढ़ गई है। इसके बावजूद भी फसलों में सुधार नहीं हो रहा है। कुछ किसान ने बताया कि प्याज की 50% फसल खराब हो चुकी है और लहसुन भी पीला पड़ रहा है।

किसानों के सुझाव और उम्मीदें

किसानों का मानना ​​है कि मौसम साफ होने के बाद फसलों की स्थिति में सुधार हो सकता है। उन्हें सुझाव दिया जा रहा है कि वे अपनी फसलों की देखभाल में और भी सतर्क रहें और सही दवाईयों का प्रयोग करें।

किसानों की आत्मविश्वास और सजगता

किसान ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि ये समस्याएं तो आती-जाती रहती हैं, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और सजगता के साथ इस समस्या का सामना कर रहे हैं। वे दुसरी फसलों की बोवनी करने का निर्णय लेने के लिए तैयार हैं।

इस प्रकार, किसानों को इस समय में आत्मनिर्भर बने रहने के लिए सतर्क रहना है। मौसम की उतार-चढ़ाव और कोहरे की समस्या से निपटने के लिए सही उपायों का चयन करना होगा। किसानों को अगर अपनी फसलों की सुरक्षा में सफलता मिलती है तो इससे वे न केवल अपने लिए बल्कि समृद्धि के लिए भी एक मिसाल स्थापित करेंगे।

इस समय कोहरे के कारण हो रहे नुकसान को देखते हुए उन्होंने किसानों को सलाह दी है। उन्होंने बताया कि मौसम साफ होने पर फसल रिकवर कर सकती है और किसानों को योजनाएं बनाने में मदद की जा रही हैं।

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Farmer using emandi features

बड़ोरा मंडी में ऑनलाइन कटेगी प्रवेश पर्ची और तुलाई पर्ची: ई-मंडी से किसानों को नई सुविधाएं

आधुनिक तकनीकी युग में, भारतीय कृषि सेक्टर भी डिजिटल मोड में परिवर्तन कर रहा है, और इसी सिलसिले में बड़ोरा मंडी को ई-मंडी में बदलने की योजना शुरू की गई है। इस नए कदम से किसानों को अपनी उपज को बेचने में नई सुविधाएं मिलेंगी, जो उन्हें आसानी से और सुरक्षित तरीके से अपना व्यापार करने का अवसर देगा। यह लेख बताता है कि कैसे बड़ोरा मंडी को ई-मंडी में बदलने से किसानों को अनलॉक होगा और कृषि व्यापार में डिजिटल सुधार कैसे होगा।

क्या बड़ोरा मंडी को ई-मंडी बनाने से किसानों को होगा फायदा? इसका असर कृषि व्यापार में कैसे दिखेगा? इन सवालों के साथ, बड़ोरा मंडी को ई-मंडी में बदलने की पहल की गई है, जिससे किसानों को कई सुविधाएं मिलेंगी।

Farmer using emandi features
Farmer using emandi features

बड़ोरा मंडी को ई-मंडी में बदलने के लिए मंडी सचिव सहित मंडी निरीक्षकों को हरदा की ऑनलाइन मंडी में किए जा रहे कार्य से अवगत कराया गया है। इस परिवर्तन से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों को प्रवेश पर्ची के लिए कतार में खड़ा होना नहीं पड़ेगा, और वे अपनी उपज को ई-मंडी के माध्यम से आसानी से बेच सकेंगे।

मोबाइल से प्रवेश पर्ची और तौल पर्ची

  • ई-मंडी के लॉन्च के बाद, किसान अपने मोबाइल में एप डाउनलोड करके प्रवेश पर्ची काट सकेंगे और मंडी में उपस्थित तुलाई पर्ची भी ऑनलाइन निकाल सकेंगे। यह सुनिश्चित करेगा कि उन्हें अपनी उपज को बेचने में कोई दिक्कत नहीं होगी और सारे प्रक्रिया को ऑनलाइन बनाए रखा जाएगा।

इस परिवर्तन से किसानों को लाइन में लगकर प्रवेश पर्ची के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि वे घर बैठे ही मोबाइल में एप डाउनलोड करके प्रवेश पर्ची काट सकेंगे। यह नए तकनीकी उपायों के माध्यम से किसानों को सुविधा प्रदान करने का एक प्रमुख कदम है और उन्हें अपनी उपज को बेचने में आसानी होगी।

  • ई-मंडी के लॉन्च के साथ, बड़ोरा मंडी में तौल पर्ची भी ऑनलाइन काटी जाएगी। इसके लिए पीओएस मशीन खरीदी जाएगी, जिससे तौल पर्ची काटने की प्रक्रिया में भी सुधार होगा। ऑनलाइन प्रक्रिया में तुलैया को भी प्रशिक्षित किया जाएगा, जिससे उन्हें ऑनलाइन मंडी में अपनी उपज बेचने में मदद मिलेगी। 

ई-मंडी बनने के बाद, बड़ोरा मंडी का व्यापार ऑनलाइन होगा और तौल पर्ची भी ऑनलाइन काटी जाएगी, जिससे समय और ऊर्जा की बचत होगी। यह परिवर्तन कृषि सेक्टर में डिजिटलीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो किसानों को नए और आसान तरीकों से उपज बेचने का अवसर प्रदान करेगा।

हरदा मंडी को ई-मंडी में बदलने के लिए भोपाल में एमडी और कृषि सचिव द्वारा आयोजित की गई ट्रेनिंग के पश्चात्, ई-मंडी की शुरुआत की तैयारी में हो रही है। आने वाले समय में, किसान अब अपनी उपज की ऑनलाइन प्रवेश पर्ची घर बैठे ही काट सकेंगे, और तुलाई पर्ची भी ऑनलाइन होगी। इसके लिए तैयारी जोरों पर है और किसानों को सही दिशा में मार्गदर्शन के लिए प्रचार-प्रसार का भी प्रोत्साहन किया जा रहा है। साथ ही, व्यापारिक समूहों के साथ बैठकें बुलाई जा रही हैं, ताकि उन्हें भी इस नए डिजिटल परिवर्तन की सहायता मिले। इस प्रक्रिया के माध्यम से, जल्द ही मंडी में ऑनलाइन कार्य शुरू होने का इंतजार है।

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Panmethi Crop affect due to fog

कोहरे की चपेट में आई पान मेथी की फसल , तिरपाल से बचाव

क्या होगा जब समय की धूप अपना चेहरा देखाएगी नहीं, और कोहरा लगातार 10 दिनों तक अपना राज बनाए रखेगा? नए साल ने अपने साथ एक अनूठा मौसम लेकर आया है, जिसने न केवल धूप को देखने का मौका दिया है, बल्कि सर्दी की बर्फीली चादर में पृथ्वी को लपेट लिया है। किसानों में हलचल मची हुई है, क्योंकि कोहरे की गहरी छाया ने किसानों की मेहनत को और पेड़-पौधों को भी प्रभावित कर दिया है।

नए साल के 10 दिनों के बाद भी, धूप की किरणें किसानों के खेतों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। इसका परिणाम स्थानीय आबादी के लिए चिंता का कारण बना है, जबकि सर्दी ने पेड़ों और पौधों को नष्ट कर दिया है। ग्रामीणों की बातचीत से पता चलता है कि यह स्थिति पहली बार हुई है जब ऐसा हो रहा है कि 10 दिन तक कोहरा बना रहता है और धूप का सामान्य समय नहीं हो पा रहा है।

Panmethi Crop affect due to fog
Panmethi Crop affect due to fog

किसानों को लेना पड़ रहा तिरपाल का सहारा

खजवाना क्षेत्र के कई गांवों में पान मेथी की बुआई हो रही है, लेकिन सर्दी के कारण पान मेथी को सुखाने में अधिक समय लग रहा है। ढाढ़रिया कला, ढाढ़रिया खुर्द, देशवाल, रूण, इंदोकली, निम्बड़ी, जनाणा और अन्य क्षेत्रों में भी यह समस्या देखी जा रही है। किसानों को अपने पौधों को कोहरे से बचाने के लिए तिरपाल का सहारा लेना पड़ रहा है। इस बार सर्दी ने पेड़ों और पौधों को भी प्रभावित किया है, जिन्हें बचाने के लिए किसानों को और भी मेहनत करनी पड़ रही है।

पानमेथी सुखाना हो रहा मुश्किल

पहले विश्व प्रसिद्ध पान मेथी के भावों ने किसानो परेशान किया, और अब इसके बाद, लगातार कोहरे ने किसानो को और भी परेशान कर दिया है। जो पहले 3 दिनों में सूखती थी, अब वह 5 से 6 दिनों में सुख रही है, और इसमें तिरपाल से ढकना अत्यंत आवश्यक बन गया है|

मैंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा कोहरा देखा है जिसने पौधों को जला दिया है, और इससे धूप को देखना भी कठिन हो गया है। इस अनूठे कोहरे में, पेड़-पौधे तक जल गए हैं।

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Lehsun crop damage

किसानों की मुश्किल:लहसुन की फसल में बीमारी और पीलापन की समस्या

क्या है अंचल क्षेत्र के लहसुन उत्पादक किसानों की नई समस्या?

अंचल क्षेत्र के लहसुन उत्पादक किसानों को एक नई समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उनकी खेतों में एकाएक बीमारी फैलने लगी है और कई जगहों पर फसल पीली होकर सूख रही है। किसानों का कहना है कि मच्छर और थ्रिप्स के कारण इस बीमारी का प्रकोप हो रहा है, जिससे फसल पर नकारात्मक प्रभाव हो रहा है।

Lehsun crop damage
Lehsun crop damage

किसानों की समस्या: पानी की कमी और फसल का सूखना

किसानों ने बताया कि इस बार पानी की कमी के बावजूद भी उन्होंने लहसुन की बुआई की थी, लेकिन फिर भी फसल के पत्ते सूखकर गिर रहे हैं। ये समस्या न केवल पौधा सूखने की ओर बढ़ा रही है, बल्कि इससे पौधा में पौष्टिकता की कमी भी हो रही है। किसानों ने बताया कि मौसम परिवर्तन और कोहरे के कारण काली मस्सी का प्रकोप भी हो रहा है, और इसके उपचार में असर नहीं दिखा रहा है।

कृषि विज्ञान केन्द्र का सुझाव: पीलापन रोकने के उपाय

किसानों ने कृषि विज्ञान केन्द्र से परामर्श लेने का फैसला किया है, और कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक जीएस चुंडावत ने बताया कि मौसम में होने वाले बदलाव से फफूंद जनित रोगों का प्रकोप बढ़ रहा है। उनका सुझाव है कि लहसुन की फसल में पीलापन को रोकने के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी की 1 एमएल मात्रा या पूर्व मिश्रित फफूंद नाशक कार्बेडाजिम + मैनकोजेब की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव किया जा सकता है। इसके साथ ही पांच किलोग्राम सल्फर प्रति बीघा की दर से और 500 एमएल हेक्साकोनाजोल 5% ईसी की 10 किलो रेत में मिलाकर के प्रति बीघा की दर से भुरकाव किया जा सकता है।

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