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Kheti

Kisan kheti jankari

Soil Importance for farming

खेती का रहस्य: मिट्टी के तत्वों का महत्व और उनका संतुलन

मिट्टी के तत्वों को जानकर ही करें खेती

क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी शानदार खेती के पीछे उसकी शक्ति का एक बड़ा राज हो सकता है? क्या आपने यह सोचा है कि वृक्ष, फसल और फूल कैसे उच्च गुणवत्ता और अद्वितीय रसों से भरे हो सकते हैं? इस रहस्य का हल है मिट्टी के तत्वों की जानकारी। हमारे किसान भाइयों के लिए एक सवाल – क्या आप जानते हैं कि आपकी खेती की जद्दोजहद में मिट्टी के तत्वों का महत्व क्या है? आइए, हम इस रहस्यमय विषय पर चर्चा करें और सीखें कि मिट्टी को सही ढंग से संतुलित करके हम कैसे प्रतिष्ठानपूर्ण और उपजाऊ फसलों का उत्पादन कर सकते हैं।

मिट्टी की जाँच कराना आवश्यक है

किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम मिट्टी की जाँच है। मिट्टी की गुणवत्ता को मापने के लिए विभिन्न प्रक्रियाएं होती हैं, जैसे कि फिजिकल टेक्स्चर, केमिकल टेक्स्चर, और बायोलॉजिकल टेक्स्चर। इससे हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कौन-कौन से तत्व मिट्टी में मौजूद हैं और उनकी मात्रा क्या है।

आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलन जरूरी

मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों का संतुलन होना बहुत आवश्यक है। विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलों के लिए अलग होती है। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाशियम, सल्फर, आदि ये सभी पोषक तत्व मिट्टी में होने चाहिए ताकि पौधों को सही मात्रा में पोषण मिल सके।

Soil Importance for farming
Soil Importance for farming

मुख्य पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन

मुख्य पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, और ऑक्सीजन पौधों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये तत्व प्राय: वायु और पानी से प्राप्त होते हैं। विशेषकर, कार्बन द्वारा पौधे को विकसित होने के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है जबकि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का संयोजन पानी को पौधों के लिए उपयुक्त बनाता है।

शेष 14 पोषक तत्त्वों के लिए भूमि पर निर्भर

शेष 14 पोषक तत्व भी विभिन्न पौधों के लिए आवश्यक होते हैं और इनका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इनमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, बोरॉन, मैंगनीज, आदि शामिल हैं। यह सभी तत्व पौधों के स्वस्थ विकास के लिए आवश्यक हैं और इनकी कमी से पौधों में रोग और प्रदर्शन में कमी हो सकती है।

मिट्टी के तत्वों का सही संतुलन

यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि मिट्टी में विभिन्न तत्वों का सही संतुलन हो। सभी पोषक तत्वों की सही मात्रा में होना बहुत आवश्यक है ताकि पौधों को सभी आवश्यक ऊर्जा और पोषण मिल सके। मिट्टी की खेती में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें मिट्टी के संतुलित तत्वों की सच्चाई समझनी चाहिए और उन्हें सही ढंग से प्रबंधित करना चाहिए।

मिट्टी का उपयोग कैसे करें

जल संचारण की निगरानी: मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को सही मात्रा में सुनिश्चित करने के लिए सही जल संचारण की निगरानी रखना चाहिए।

जल संचारण का अनुकूलन: फसलों की अच्छी उत्पादन के लिए जल संचारण का सही अनुकूलन बहुत महत्वपूर्ण है।

कमीजो और पोषण की दृष्टि से समृद्धि: मिट्टी में कमीजो का अनुकूलन करते समय और पौधों को सही पोषण प्रदान करते समय सावधानी बरतना चाहिए।

उर्वरकों का सही समय पर प्रयोग: फसलों की विकास प्रक्रिया में उर्वरकों का सही समय पर प्रयोग करना चाहिए।

निष्कर्ष

मिट्टी के तत्वों को समझना और सही संतुलन में रखना हर किसान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर हम अपनी खेती के लिए मिट्टी को ठीक से नहीं देखेंगे तो हमारी फसलों का उत्पादन कभी भी अपर्याप्त हो सकता है। इसलिए, हर किसान को अपनी मिट्टी की जाँच कराने और उसे सही ढंग से प्रबंधित करने का अधिकार होना चाहिए। इससे हम न केवल अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं बल्कि फसलों की गुणवत्ता भी बनाए रख सकते हैं। इससे किसान भाइयों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार,अधिक गुणवत्ता और उत्पादन को हासिल कर सकता है, जिससे उन्हें अपार सफलता मिलेगी।

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Organic Farming motive

खेती की नई दिशा: प्राकृतिक तरीकों से शक्तिशाली खेती

प्राकृतिक खेती: क्या यह है और क्यों है यह अहम?

आपकी खेतों का संरक्षण करने के लिए क्या आपने कभी प्राकृतिक खेती का विचार किया है?

आज के युग में, जहाँ तकनीकी तरीकों का प्रयोग हो रहा है, क्या हम नहीं भूल रहे हैं कि हमारी मिट्टी हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है? इस लेख में हम जानेंगे कि प्राकृतिक खेती क्या है और इसके क्या उद्देश्य हैं, साथ ही किस तरह से यह किसानों को लाभ पहुंचा सकती है.

प्राकृतिक खेती का उद्देश्य

खेती की लागत कम करके अधिक लाभ लेना

प्राकृतिक खेती का पहला उद्देश्य है खेती की लागत को कम करके किसानों को अधिक लाभ पहुंचाना। रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बजाय, प्राकृतिक खेती में खाद, जैव उर्वरा, और जैविक खेती के सिद्धांतों का प्रयोग होता है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है और लाभ में भी वृद्धि होती है।

मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना

प्राकृतिक खेती से मिट्टी को उर्वरा बनाए रखने में सहायक होता है। जैव खाद, जैव उर्वरा, और अन्य प्राकृतिक तत्वों का प्रयोग करके मिट्टी को सुषमा देने का कारण होता है, जिससे फसलों का प्रदर्शन बेहतर होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है।

Organic Farming motive
Organic Farming motive

रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाना

प्राकृतिक खेती में हम रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग को कम करते हैं या उससे पूरी तरह से बचत करते हैं। इससे हम न केवल अपने उत्पादों को स्वस्थ बनाए रखते हैं बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

कम पानी व सिंचाई से अधिक उत्पादन लेना

प्राकृतिक खेती की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें कम पानी और सिंचाई का उपयोग होता है, लेकिन उत्पादन में वृद्धि होती है। यह आपकी खेती को सुस्ती देने में मदद करता है और साथ ही पानी की बचत करता है।

प्राकृतिक खेती में सतत पोषणीय विकास

प्राकृतिक खेती में सतत पोषणीय विकास के लिए हमें अपनी खेती को सावधानीपूर्वक परिचालित करना होता है। इसमें विभिन्न तकनीकियों का प्रयोग, बीजों का सही चयन, और सुरक्षित पोषणीय तत्वों का प्रयोग शामिल है।

प्राकृतिक खेती के लिए उपयुक्त तकनीकियाँ

प्राकृतिक खेती में विभिन्न तकनीकियों का प्रयोग होता है जो खेती को सुरक्षित और उत्पादकर होने में मदद करती हैं। उचित जल संचारण, खेतों की सही तैयारी, और जैविक उर्वरा स्रोतों का प्रयोग इसमें शामिल हैं।

बीजों का सही चयन – 
प्राकृतिक खेती में सफलता के लिए सही बीजों का चयन करना महत्वपूर्ण है। स्थानीय बीजों का प्रयोग करना, जो क्षेत्र के अनुकूल हों, और जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करें।

सुरक्षित पोषणीय तत्वों का प्रयोग –
प्राकृतिक खेती में हम सुरक्षित पोषणीय तत्वों का प्रयोग करके खेती को सुरक्षित बना सकते हैं। जैसे कि जैविक खाद, जीवाणु रक्षक, और संरक्षित बीज।

"खेती वह कला है जिसमें मिट्टी को आपसी जुड़ाव से सजीव किया जाता है।" किसानों के लिए यह एक प्रेरणा सूत्र है जो प्राकृतिक खेती को अपनाने की प्रेरित करता है। यह कला है जिसमें किसान अपनी मेहनत के बल पर मिट्टी को सजीव बनाता है और स्वस्थ और सुरक्षित खाद्य का उत्पादन करता है।

संक्षेप

इस लेख में हमने देखा कि प्राकृतिक खेती का उद्देश्य खेती की लागत को कम करना और अधिक लाभ प्राप्त करना है, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना है, रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाना है, और कम पानी व सिंचाई से अधिक उत्पादन प्राप्त करना है।

प्राकृतिक खेती हमें हमारे पर्यावरण की रक्षा करने का एक शानदार तरीका प्रदान करती है, साथ ही किसानों को सस्ते तरीके से अधिक लाभ प्रदान करती है। इसके लाभों को देखते हुए, किसानों को इस प्रकार की खेती में रुचि लेना चाहिए ताकि हम एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकें।

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Spray performing by farmer

चेपा से कैसे बचाएं गेहूं व जौ की फसल को

क्या आप जानते हैं गेहूं और जौ के खेतों में चेपा (अल) से बचाव कैसे किया जा सकता है?

खेती में एक महत्वपूर्ण सवाल आता है – कैसे बचा जा सकता है गेहूं और जौ की फसलों को चेपा (अल) के आक्रमण से? यह कीट पौधों को कमजोर करती है और उनसे रस चूसकर उन्हें हानि पहुंचाती है। इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है? इस पोस्ट में हम इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ेंगे और गेहूं और जौ की फसलों को चेपा (अल) से बचाने के लिए कुछ उपायों पर चर्चा करेंगे।

चेपा (अल) का आक्रमण - एक समस्या जो किसानों के लिए चिंता का कारण

चेपा (अल) की फसलों में आक्रमण के कारण पौधों की कमजोरी हो जाती है, जिससे फसल का प्रदर्शन प्रभावित होता है। इस कीट के बच्चे और प्रौढ़ पत्ते पौधों के रस को चूसकर उन्हें कमजोर बना देते हैं, जिससे उनका सही रूप से विकास नहीं हो पाता।

मैलाथियान I.C - एक अचूक समाधान

इस समस्या का समाधान करने के लिए हमारे पास एक प्रमुख और प्रभावी उपाय है – मैलाथियान 50 I.C। इसे 500 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना है।

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मैलाथियान का उपयोग - विवेकपूर्णता से

मैलाथियान का उपयोग करने से पहले, हमें ध्यानपूर्वक विवेकपूर्णता से काम करना चाहिए। यह निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि हम सही मात्रा में मैलाथियान का उपयोग करें ताकि किसानों को अधिक लाभ हो सके और फसल को कोई हानि नहीं पहुंचे।

मैलाथियान के फायदे - फसल को सुरक्षित रखने के लिए

मैलाथियान का उपयोग करने से फसलों को चेपा (अल) से सुरक्षित रखा जा सकता है। यह कीटनाशक पौधों को सुरक्षित बनाए रखने में मदद करता है और उन्हें आक्रमण से बचाता है।

Tweet Department of agriculture haryana
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संबंधित सलाह - एक सफल किसान की कुंजी

मैलाथियान का उपयोग करने के अलावा, किसानों को ध्यान देने योग्य अन्य सलाहें भी मिलती हैं। उन्हें फसल की सही देखभाल और प्रबंधन के लिए संबंधित सलाह लेनी चाहिए।

निष्कर्ष - सुरक्षित फसल के लिए सही कदम

चेपा (अल) के आक्रमण के खिलाफ लड़ाई में मैलाथियान एक महत्वपूर्ण और प्रभावी उपाय है। सही मात्रा में इसका उपयोग करके किसान अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकता है और अधिक उत्पादन हासिल कर सकता है। साथ ही, उन्हें फसल की सही देखभाल के लिए संबंधित सलाहों का पालन करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

खेती में सफलता प्राप्त करने के लिए किसानों को नए और प्रभावी तकनीकों का भी सही समर्थन मिलना चाहिए। इसके लिए सरकार और कृषि विभागें उचित सुझाव और तकनीकी सहायता प्रदान कर सकती हैं। एक समृद्धि भरा कृषि क्षेत्र तभी संभव है जब हम सभी मिलकर किसानों को उनकी ज़रूरतों के हिसाब से सहारा देंगे और उन्हें नए और उन्नत तकनीकी उपायों का प्रदान करेंगे।

इस बातचीत में, हम एक सकारात्मक कदम की ओर बढ़ने के लिए साथ मिलकर किसानों की मदद कर सकते हैं और एक स्वस्थ और समृद्धि भरा कृषि समाज बना सकते हैं।

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Choose best Fertilizer for crop

आपकी फसलें सुरक्षित कैसे रहेंगी: किसानों के लिए सही कीटनाशक का चयन और उपयोग

नागौर – क्या आपने कभी सोचा है कि रबी की फसलों में होने वाले रोगों और कीटाणुओं से निपटना कितना कठिन हो सकता है? नहीं ना? लेकिन यह सच है कि किसानों को इस समस्या का सामना करते हुए अपनी फसलों को सुरक्षित रखने के लिए किटनाशकों की आवश्यकता है, और यह बहुत बड़ी चुनौती है।

Choose best Fertilizer for crop
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अवैध कीटनाशकों से निपटने की चुनौती

रबी की फसलों में होने वाले रोगों के साथ-साथ, बाजार में अवैध कीटनाशकों का व्यापार हो रहा है, जिससे किसानों को और भी ज्यादा नुकसान हो रहा है। कुछ समय पहले हुए एक घटना ने दिखाया कि गलत कीटनाशक का छिड़काव करने से मूंग की फसल जल गई, जिससे किसानों को बड़ा मुआवजा की बजाय नुकसान हुआ।

इस समस्या को लेकर चेतावनी दी है कि अवैध कीटनाशकों का उपयोग करने से बचने के लिए किसानों को कृषि विभाग द्वारा सुनिश्चित कीटनाशकों का उपयोग करने का सुझाव दिया जा रहा है। वह बताते हैं कि किसानों को कृषि विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले शिविरों में जाकर सही जानकारी हासिल करनी चाहिए ताकि उन्हें अच्छे कीटनाशक मिल सके।

इस बढ़ते हुए समस्या का समाधान करने के लिए, कृषि अधिकारी शंकरराम सियाक ने इसबगोल और जीरा की फसलों में लगने वाले कीटाणुओं और रोगों के खिलाफ निम्नलिखित उपाय बताए हैं:

इसबगोल की फसल

  • धब्बा / अंगमारी रोग: मैन्कोजेब 75% डब्ल्यू.पी. का 0.2% पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
  • तुलासिता रोग: मैन्कोजेब 75% डब्ल्यू.पी. या रिडोमिल एम जेड 78 की 0.2% पानी में घोल कर छिड़काव करें।
जीरा की फसल
  • मोयला का नियंत्रण: डायमिथोएट 30 ईसी, मैलाथियॉन 50 ईसी, या इमिडोक्लोप्रीड 17.8 एस एल का उपयोग करें।
  • झुलसा (ब्लाइट) रोग: टॉप्सिन एम, मैन्कोजेब 75% डब्ल्यू.पी., या थाइरम का उपयोग करें।
  • उखटा (विल्ट) रोग: कार्बेण्डेजिम 50% डब्ल्यू.पी. से बुआ

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Moongfali ki kheti

मूंगफली की खेती: नए तरीके से किसानों को लाभ,जानिए उगाने का सही तरीका

महंगाई के दौर में किसानों को नए और लाभकारी तरीके से फसल उगाने की जरूरत है। इस विचार में, मूंगफली की खेती उत्कृष्ट एक विकल्प है जो किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है। इस लेख में, हम जानेंगे कि मूंगफली की खेती का सही तरीका क्या है और कौन-कौन सी बातें इसमें ध्यान देना चाहिए।

Moongfali ki kheti

मूंगफली की खेती: उगाने का सही तरीका

बुआई का समय:

  • मूंगफली की बुआई का समय बहुत महत्वपूर्ण है। बुआई को बरसात से पहले कर लेना चाहिए ताकि पूरी फसल को बरसात के असर से बचाया जा सके।
  • अगर बुआई सही समय पर नहीं हुई, तो फसल की पूरी पैदावार पर बरसात का गलत असर हो सकता है।

पूर्व-बुआई उपाय:

  • खेत में मूंगफली के बीजों का पूर्व-बुआई उपाय करना चाहिए। इससे बीजों को बीमारियों से बचाया जा सकता है और उत्तम उत्पादन हो सकता है।

सही सिंचाई:

  • बुआई के 15-20 दिन बाद, सही सिंचाई करना बहुत जरूरी है। स्प्रिंकलर से पानी देना फसल को उच्च पोषण प्रदान करेगा और उत्पादन को बढ़ावा देगा।

जैविक कीटनाशकों का उपयोग:

  • हर 15-15 दिनों पर जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए। यह कीटाणुओं से फसल को सुरक्षा प्रदान करेगा और उच्च गुणवत्ता वाली मूंगफली देगा।

मुख्य रूप से होने वाली मूंगफली की खेती

मूंगफली की खेती मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होती है। इन राज्यों में खासतर से जून में बुआई की जाती है और अक्टूबर तक कटाई हो जाती है।

खेती के लिए जरूरी उपाय

मूंगफली की खेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को ध्यानपूर्वक खेती करने के लिए उपायों को अपनाना चाहिए। सूर्य की अधिक रोशनी, उच्च जलवायु, और नए तकनीकी तरीकों का उपयोग करना चाहिए।

मूंगफली का पोषण

मूंगफली न केवल बाजार में बढ़ती मांग के कारण ही बल्कि इसके सेवन से हमारे शरीर को भी कई पोषण तत्व मिलते हैं। मैग्नीशियम, फोलेट, और विटामिन ई के साथ ही, मूंगफली प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत भी है। इसका सेवन हमें ऊर्जा प्रदान करता है और शारीरिक विकास में मदद करता है।

मूंगफली की खेती का सही तरीका जानना किसानों को नए और लाभकारी तरीके से फसल उगाने में मदद कर सकता है। इससे न केवल उन्हें अधिक मुनाफा हो सकता है, बल्कि बाजार में भी अधिक मूंगफली की मांग पूरी की जा सकती है। किसानों को नए तकनीकी तरीकों का उपयोग करके खेती में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए ताकि वे अधिक से अधिक उत्पादन कर सकें और अपने परिवार को सुरक्षित रख सकें।

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Farmer showing crop

छह एकड़ में चार लाख रुपए की बचत: जैविक खेती का कमाल

जरा सोचिए, क्या आपको छह एकड़ जमीन में चार लाख रुपए की बचत की संभावना है? यह सोचकर आपको शायद हंसी आ रही है, लेकिन यह सपना अब सच्चाई बनता जा रहा है।

जैविकखेती एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से किसान अपने फसलों की पैदावार को बढ़ा सकते हैं और खर्च कम कर सकते हैं। यह विधि पेशेवर किसानों के लिए एक बड़ा लाभदायक द्वार हो सकती है, जिससे उन्हें न केवल आर्थिक लाभ मिलेगा, बल्कि उनके परिवार की मानसिकता में भी सुधार होगा।

जैविकखेती के इस कमाल के बारे में और अधिक जानने के लिए, हम इस लेख में आपको बताएंगे कि कैसे छह एकड़ में चार लाख रुपए की बचत की जा सकती है। यह तकनीक किसानों को उनकी मेहनत के मुताबिक खेती के लिए पुराने और नए तरीकों की प्रयोग करने का मौका देती है। इसलिए, आइए जानें कि यह कैसे संभव हो सकता है और किसानों को कैसे इस नयी तकनीक का उपयोग करके लाभ मिल सकता है।

Farmer showing crop

मुकेश की कहानी

मुकेश ने बारह एकड़ जमीन खरीदी लेकिन अब उनके पास खेती के लिए पैसे नहीं बचे हैं। केले की फसल उगाने में उन्हें लाखों की लागत आ रही थी. वे आर्थिक रूप से तनाव महसूस कर रहे थे लेकिन फिर भी उनमें खेती का जुनून था। इसलिए, उन्होंने यूट्यूब पर खोज शुरू की और जैविक खेती पर मार्गदर्शन पाया। इसके बाद वे जैविक केले उगाने को लेकर उत्साहित हो गए।

कैसे तैयार करें खाद सस्ते में

जैविक खेती में मेहनत तो लगती है, लेकिन लागत ज्यादा नहीं आती। बाजार से फल लेकर डिकम्पोस्ट तैयार करते हैं। इसमें बहुत अधिक सामग्री की आवश्यकता नहीं होती. बाजार से अपशिष्ट पदार्थ मिल जाता है। मुकेश ने 12 एकड़ के खेत में से 6 एकड़ में चना और 6 एकड़ में केले के पौधे लगाते हैं। मुकेश के पास खेतों में जैविक खाद तैयार करने की व्यवस्था है।

हर पेड़ पर 50 से 60 रुपये कैसे बचाएं

मुकेश के मुताबिक, केले की फसल उगाना महंगा है। एक पेड़ पर रासायनिक विधि का प्रयोग करने में लगभग 50-60 रूपये का खर्च अधिक आता है। अगर आप छह एकड़ में 8,000 पेड़ लगाएंगे तो करीब चार लाख रुपये का खर्च आएगा. जैविक खेती करके इस लागत से बचा जा सकता है। अगर केले का बाजार भाव अच्छा हो तो मुनाफा दोगुना हो सकता है

केले की जैविक खेती से अच्छे परिणाम मिलते हैं। कम लागत में अच्छी आमदनी के लिए जैविक खेती की सलाह दी जाती है। पिछली फसलों का बचा हुआ हिस्सा भी पेड़ों को पोषण देता है।

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Jeera crop facing disease problem

जानिए कैसे बचाएं उकठा रोग से अपनी जीरा की फसल, छिड़काव की सलाह

मेड़ता  – कृषि उपजिला मेड़ता में रबी की जीरे की फसल में उकठा रोग की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। किसान इस मुद्दे को लेकर क्षेत्र के सहायक कृषि निदेशक (विस्तार) कार्यालय से संपर्क कर रहे हैं। कृषि विशेषज्ञों ने पर्यवेक्षक को सलाह दी है कि वे खेत में रहकर रोकथाम के लिए किसानों को कार्बेन्डाजिम और ट्राइकोडर्मा का छिड़काव कराने के लिए मार्गदर्शन करें।

कृषि उपनिदेशक (विस्तार) राम प्रकाश बेड़ा ने बताया कि कृषि क्लस्टर क्षेत्र में रबी सीजन 2023 की बुआई पूरी हो चुकी है। इस वर्ष मेड़ता कृषि उपजिला में 51,400 हेक्टेयर में जीरा की फसल बोई गई थी. बुआई को अभी कुछ ही समय हुआ है और जीरा की फसल अब शुरुआती विकास चरण में पाउडरी फफूंदी की समस्या से जूझ रही है। कई मामले भी सामने आ चुके हैं. किसानों को फफूंदनाशकों का उपयोग करके ख़स्ता फफूंदी के खिलाफ निवारक उपाय करने की सलाह दी गई है, और फील्ड अधिकारियों को क्षेत्र में किसानों की निगरानी और मार्गदर्शन करने का निर्देश दिया गया है।

 

Jeera crop facing disease problem

समस्या लेकर कार्यालय पहुंचे मेड़ता के किसान

जीरे में लगने वाले उकठा रोग को लेकर गुरुवार को कई किसान अपनी समस्या लेकर कार्यालय पहुंचे। कृषि के सहायक निदेशक ने उन्हें बीमारी को आगे फैलने से रोकने के लिए फफूंदनाशकों के प्रयोग की सलाह दी और इस मामले पर मार्गदर्शन प्रदान किया।

उकठा रोग है क्या

उकठा रोग (वील्टिंग) के कारण पौधों की पत्तियाँ और कोमल भाग सूख जाते हैं और अपनी दृढ़ता खो देते हैं। रबी सीजन में जीरे की फसल में यह रोग देखने को मिल रहा है. यह रोग एक या दो प्रकार के कवक, फ्यूजेरियम प्रजाति या स्क्लेरोटियम प्रजाति के कारण होता है। ये फफूंदी मिट्टी में कुछ समय तक जीवित रह सकते हैं।

कृषि अधिकारी ने दिया दिशानिदेश -

  • जीरे की फसल में उकठा रोग फैलने से रोकने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर एक किलोग्राम कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशी का छिड़काव करना चाहिए.
  • ट्राइकोड्रमा अर्जेनियम जैविक फफूंदनाशी 1 किलो गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें, जिससे बीमारी ना फैले।

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Top 5 variety Masoor ki kheti

मसूर दाल की शीर्ष 5 किस्मों को उगाने से बंपर फसल होगी

जानें मसूर की टॉप 5 किस्म कम लगात अधिक मुनाफा

 क्या आप इस वर्ष अपनी मसूर की फसल को अधिकतम करना चाहते हैं? यदि हां, तो उगाने के लिए सही किस्मों का चयन करना महत्वपूर्ण है। मसूर की शीर्ष 5 किस्मों का चयन करके, आप एक भरपूर फसल सुनिश्चित कर सकते हैं जो आपकी अपेक्षाओं से अधिक होगी।

 मसूर दाल एक बहुमुखी और पौष्टिक फसल है जिसे विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है। वे प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिन और खनिजों से भरपूर हैं, जो उन्हें कई किसानों और बागवानों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बनाता है। हालाँकि, जब उपज और गुणवत्ता की बात आती है तो दाल की सभी किस्में समान नहीं होती हैं।

 भरपूर फसल प्राप्त करने और अपनी कड़ी मेहनत का लाभ पाने के लिए, दाल की शीर्ष 5 किस्मों का चयन करना महत्वपूर्ण है जो उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी साबित हुई हैं। सर्वोत्तम उत्पादन और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इन किस्मों का सावधानीपूर्वक प्रजनन और परीक्षण किया गया है। मसूर की सही किस्मों का चयन करके, आप अपनी सफलता की संभावना बढ़ा सकते हैं और भरपूर फसल का आनंद ले सकते हैं। तो, आइए उन शीर्ष 5 किस्मों के बारे में जानें जो आपकी मसूर की फसल को अगले स्तर पर ले जाएंगी।

Top 5 variety Masoor ki kheti

मसूर की पंत एल-639 किस्म (Pant L-639 Variety Of Lentils)

मसूर की एल-639 किस्म 130 से 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इस किस्म से आप प्रति हेक्टेयर 18 से 20 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं. इस किस्म की खास बात यह है कि यह उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधी है और इसमें बीज कम गिरते हैं।

मसूर की मलिका (के 75) किस्म (Malika (K 75) variety of lentils)

मसूर की मलिका किस्म 120 से 125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके बीज बड़े और गुलाबी रंग के होते हैं। औसतन, यह किस्म प्रति एकड़ 4.8 से 6 क्विंटल उपज दे सकती है। यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और बिहार में खेती के लिए उपयुक्त है।

मसूर की पूसा शिवालिक (एल 4076) किस्म (Pusa Shivalik (L 4076) variety of lentils)

मसूर की पूसा शिवाल्क (एल 4076) लगभग 120 से 125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार औसतन प्रति एकड़ 6 क्विंटल तक हो सकती है। इस किस्म को वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। यह राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए उपयुक्त है।

मसूर की पंत एल- 406 किस्म (Pant L-406 variety of lentils)

मसूर की यह किस्म, जिसे मसूर कहा जाता है, 150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी प्रति एकड़ औसतन 12 से 13 क्विंटल उपज हो सकती है. इस किस्म की खास बात यह है कि यह जंग रोग के प्रति प्रतिरोधी है। यह देश के उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी मैदानी इलाकों में उगाया जाता है।

मसूर की पूसा वैभव (एल 4147) किस्म (Pusa Vaibhav (L 4147) variety of lentils)

मसूर दाल में अन्य किस्मों की तुलना में आयरन की मात्रा अधिक होती है। इसके दानों का आकार छोटा होता है. मसूर दाल को सिंचित और वर्षा आधारित दोनों क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। इस किस्म से आप प्रति एकड़ 7 से 8 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं.

जानिये मसूर की बुवाई कैसे करे ?

मसूर की खेती के लिए आपको प्रति हेक्टेयर 30 से 35 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. वैकल्पिक रूप से, आप देरी से बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 40 से 60 किलोग्राम बीज का उपयोग कर सकते हैं। बुआई से पहले बीज को 3 ग्राम थीरम या बाविस्टिन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक 10 किलोग्राम बीज के लिए 5 ग्राम राइजोबियम कल्चर और 5 ग्राम पीएसबी कल्चर से बीजों का उपचार करें। इसके बाद बीजों को छायादार जगह पर सुखा लें और उपचारित बीजों को अगले दिन सीड ड्रिल मशीन से बो दें.

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Top 5 variety Aalo ki kheti

आलू की इन टॉप 5 किस्मों को लगाने से कम लागत में ज्यादा मुनाफा होगा

जानें आलू की टॉप 5 किस्म कम लगात अधिक मुनाफा

 क्या आप एक किसान हैं और अपनी लागत कम करते हुए अपना मुनाफ़ा अधिकतम करना चाहते हैं? यदि ऐसा है, तो आप इस बात पर ध्यान देना चाहेंगे कि आप किस प्रकार के आलू बो रहे हैं। सही किस्मों का चयन करके, आप अपने खर्चों को कम रखते हुए अपना मुनाफा बढ़ा सकते हैं।

आलू उद्योग एक प्रतिस्पर्धी उद्योग है, जहां किसान लगातार अपनी पैदावार बढ़ाने और अपने खर्चों को कम करने के तरीकों की तलाश में रहते हैं। आलू की सही किस्मों का चयन एक महत्वपूर्ण कारक है जो किसान की लाभप्रदता को बहुत प्रभावित कर सकता है। ऐसी किस्मों का चयन करके जो अपनी उच्च पैदावार और कम रखरखाव आवश्यकताओं के लिए जानी जाती हैं, किसान उर्वरक, कीटनाशक और श्रम जैसे संसाधनों पर कम खर्च करते हुए अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

यदि आप एक किसान हैं और अधिक लाभप्रदता की तलाश में हैं, तो आपके द्वारा बोए जाने वाले आलू के प्रकार के बारे में सोच-समझकर निर्णय लेना महत्वपूर्ण है। शीर्ष 5 किस्मों का चयन करके जो अत्यधिक उत्पादक और लागत प्रभावी साबित हुई हैं, आप आलू बाजार में अपनी सफलता की संभावनाओं को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं। इस लेख में, हम इन शीर्ष किस्मों पर चर्चा करेंगे और वे आपको कम लागत पर अधिक लाभ प्राप्त करने में कैसे मदद कर सकते हैं।

Top 5 variety Aalo ki kheti

कुफरी पुखराज किस्म (Kufri Topaz variety)

यह एक प्रकार का मध्यम आकार का आलू है। इसकी त्वचा पीली और गोल होती है। इसकी आंखें हल्की सी धंसी हुई हैं. इसका गूदा हल्के पीले रंग का होता है। आलू की इस किस्म को रोपण के 75 दिन बाद खोदा जा सकता है. 75 दिनों के बाद इस किस्म के आलू की औसतन पैदावार 90 क्विंटल होती है. यदि आप इसकी खुदाई 90 से 100 दिन बाद करें तो प्रति एकड़ 140 से 160 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं. आलू की इस किस्म की खास बात यह है कि यह अगेती झुलसा रोग के प्रति प्रतिरोधी तथा पछेती झुलसा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।

कुफरी अशोका किस्म (Kufri Ashoka variety)

आलू की किस्म कुफरी अशोक के कंद बड़े, अंडाकार आकार के और सफेद रंग के होते हैं। इसकी आंखें उथली होती हैं और मांस सफेद होता है। यह किस्म 70 से 80 दिन में पक जाती है. प्रति हेक्टेयर औसत उपज 250 से 300 क्विंटल के बीच होती है. यह पिछेती झुलसा रोग के प्रति संवेदनशील है। यह किस्म उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में खेती के लिए उपयुक्त है।

कुफरी लालिमा किस्म (kufri redness variety)

इस किस्म के आलू मध्यम आकार के, गोल, लाल, चिकने और पतले छिलके वाले होते हैं। उनकी आंखें गहरी और मांस सफेद होता है। ये आलू 90 से 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. औसतन इनकी उपज 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. उनमें सामान्य स्कैब रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोध क्षमता होती है। वे पीवीवाई वायरस के प्रति प्रतिरोधी हैं।

कुफरी सदाबहार किस्म (Kufri evergreen variety)

इस किस्म के आलू दिखने में सफेद और आकर्षक होते हैं. इसकी उथली आंखें और सफेद मांस होता है। यह आलू की मध्य-मौसम किस्म है। फसल रोपण के लगभग 80 से 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 300 से 350 क्विंटल तक उपज दे सकती है. इसमें पिछेती झुलसा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधक क्षमता है। इसकी खास बात यह है कि इसमें कंद बनने की प्रक्रिया जल्दी शुरू हो जाती है। इस किस्म में शुष्क पदार्थ की मात्रा लगभग 18-19% होती है। इसकी भंडारण क्षमता अच्छी है.

कुफरी अलंकार किस्म (Kufri Alankar variety)

आलू की इस किस्म को शिमला स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया है. इस किस्म को पकने में 70 दिन का समय लगता है. इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है. आलू की यह किस्म पिछेती झुलसा रोग के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी है।

जानिए आखिर कितना लाभ मिल सकता है किसानों को आलू की खेती से

यदि एक किसान एक हेक्टेयर भूमि पर आलू की खेती करता है तो वह लगभग 300 से 350 क्विंटल आलू का उत्पादन कर सकता है। आलू का बाजार भाव आमतौर पर 20 से 30 रुपये प्रति किलो तक होता है. तो, यदि आप 5 हेक्टेयर भूमि पर आलू बोते हैं और न्यूनतम मूल्य 20 रुपये प्रति किलो मानते हैं, तो आप एक फसल से लगभग 6 से 7 लाख रुपये कमा सकते हैं।

  • Anaj Mandi

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