खरगोन में मौसम में बदलाव , कोहरे के बाद फसलों पर इल्ली का प्रभाव
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मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन का शनिवार को भी असर दिखा। दूसरे दिन सुबह से ही आसमान में बादल छाए रहे और पूरे दिन कोहरे के आगोश में बीता। सूचना के अनुसार, शनिवार को दिनभर सूर्य देवता के दर्शन नहीं हुए और अधिकतम तापमान में भी थोड़ी कमी दर्ज की गई। इसके बावजूद, कोहरे के हटने के बाद फसलों पर इल्ली का प्रभाव बढ़ सकता है।
मौसम में परिवर्तन और ठंडी हवाएं के कारण लोग अब गर्म कपड़ों में लिपटे नजर आ रहे हैं। नए साल के पहले सप्ताह में अचानक हुई बूंदाबांदी और बारिश के बाद मौसम में ठंडक फैल गई है।
शनिवार के तापमान के अनुसार, न्यूनतम तापमान 14 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 23 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। शुक्रवार को भी न्यूनतम तापमान 13.6 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 24.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।
इस बारिश से गेहूं की फसल को फायदा हो सकता है, और यदि बारिश होती रही तो गोभी, मुली, आलू आदि फसल लगाने वाले किसानों ने इसे नुकसान पहुंचाने का खतरा बताया है।
कोहरे के हटने के बाद फसलों पर इल्ली का प्रभाव बढ़ सकता है, क्योंकि कोहरे के दौरान कीट-पतंगे फसलों की पत्तियों पर अंडे देते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ दिनों बाद मौसम में और बदलाव हो सकता है।
• कृषि विभाग उपसंचालक एमएल चौहान
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छिंदवाड़ा कृषि उपज मंडी कुसमेली में इतनी जगह है कि हर दिन एक लाख क्विंटल उपज की आवक हो, तो भी जाम जैसी स्थिति न बनेगी, लेकिन उठाव न होने के कारण स्थिति बिगड़ जाती है।
दरअसल, मंडी में कई व्यापारी अपनी उपज का उठाव मालगाड़ी रैक के अनुसार करते हैं। वे गोदाम ले जाने की बजाय, मंडी में ही अपने अनाज की बोरिया जमा रहने देते हैं। इससे किसानों को अपनी उपज खुले परिसर में ही ढेर करनी पड़ती है। ऐसे में यदि मौसम बिगड़ा और पानी की आफत बरसी तो इसका खमियाजा किसानों को ही भुगतना पड़ता है। बारिश के कारण नमी से ढेर किए गए उपज के दाम कम हो जाते हैं।
वहीं खुले परिसर में भी रखी छल्लियों से वाहनों का आवागमन बाधित होता है।
इस सप्ताह दो दिनों में पिछली आवक करीब 60 हजार क्विंटल हो चुकी है, शुक्रवार को भी करीब 35 हजार क्विंटल की आवक दर्ज की गई। शनिवार एवं रविवार को नीलामी नहीं होगी। इस दौरान पूरी उपज का उठाव हो जाने से आने वाले सोमवार को किसानों को शेड के अंदर ही जगह मिल सकती है।
शुक्रवार की शाम को उन्होंने खुद मंडी में भ्रमण कर शेडों का निरीक्षण किया है। इनमें एक-दो व्यापारियों ने शेडों में काफी संख्या में अपनी बोरिया स्टॉक की है। उन्हें फोन करके दो दिनों के अंदर पूरी बोरियां हटाने के लिए कहा गया है।
•मंडी सचिव सुरेश कुमार परते
तीन दिन में नहीं हो सका शेड से उपज का उठाव, किसानों का मक्का खुले मैदान में Read More »
क्या लहसुन के भावों में वृद्धि के पीछे का कारण क्या है? इस सवाल का उत्तर तलाशते हैं, हम देखते हैं कि वर्तमान में लहसुन के भाव आसमान छू रहे हैं और किसानों को अच्छे मुनाफे प्रदान कर रहे हैं।
शुरुआत में ही नए साल में लहसुन के भाव 27 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं। इसमें कुछ कारणों का संघटन है, जैसे कि मांग के साथ-साथ क्वालिटी की भी बेहतरीन होना। व्यापारियों के मुताबिक, इस साल के शुरूआती दिनों से ही लहसुन की मांग में वृद्धि हो रही है और यह भाव में तेजी का कारण बन रही है।
विभिन्न गुणवत्ता के लहसुन के न्यूनतम भाव भी 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल से ऊपर हैं, जो इसमें महंगाई की बढ़ती हुई असर को दिखा रहा है।
कृषि उपज मंडी में लहसुन की आवक में कमी होने के बावजूद, देशभर में सर्दी के मौसम के कारण लहसुन की मांग बनी हुई है। रबी सीजन के दौरान देर से बोई जाने वाले लहसुन की आवक में कमी है, जिससे आवक और भी महंगा हो रहा है।
वर्तमान में उपलब्ध लहसुन में बहुत अच्छी क्वालिटी होने के कारण भाव में वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही, हल्की क्वालिटी के लहसुन के न्यूनतम भाव भी उच्च हैं।
अगर हम कोरोना काल की बात करें तो 2021 में लहसुन के भाव 25 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आस-पास थे, जो कि 2022 के मार्च तक बने रहे। लेकिन उसके बाद से भाव में लगातार गिरावट आई है। साल नवंबर 2022 में जब नया लहसुन आया, तो 1 नवंबर 2022 को अधिकतम भाव 4551 रुपए प्रति क्विंटल थे, जबकि न्यूनतम भाव केवल 351 रुपए प्रति क्विंटल थे।
नवंबर के अंत में हालात में सुधार हुआ, लेकिन दिसंबर में फिर भावों में गिरावट देखने को मिली। इसमें किसानों को लहसुन फेंकने पर मजबूर होने का भी असर था।
2023 में भी किसानों को लहसुन के अच्छे भाव के लिए तरस गया, क्योंकि अप्रैल 2023 में अधिकतम भाव 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल के नीचे ही रहे। पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में भाव में सुधार हुआ और 15 से 18 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आस-पास अधिकतम भाव रहे। नवंबर में 20 से 25 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आस-पास रहे। दो बार लहसुन के भाव 31 हजार रुपए प्रति क्विंटल के पार भी पहुंचे थे।
इस साल भी जनवरी के प्रारंभ से ही भाव 24 से 25 हजार रुपए प्रति क्विंटल रहे और 4 जनवरी से भाव 27 हजार रुपए प्रति क्विंटल बने हुए हैं। मंडी व्यापारियों के मुताबिक, सर्दी के मौसम में मांग ज्यादा होने से भाव अच्छे मिल रहे हैं और आगे भी मांग बनी रहने के कारण भाव इसी प्रकार रहेंगे।
इससे साफ होता है कि वर्तमान में लहसुन के भावों में वृद्धि होने के पीछे कई कारण हैं और ये भाव आने वाले समय में भी बने रह सकते हैं।
मंदसौर कृषि उपज मंडी में बुधवार को कृषि जिंसों की नीलामी में सुधार हुआ है। दिनभर के कारोबार में 9664 क्विंटल उपज नीलाम होने के बाद, खुशी की खबर यह है कि लहसुन, प्याज, सोयाबीन, गेहूं, और अलसी जैसी आवकों की नीलामी में भी सुधार हुआ है।
दिनभर के कारोबार में होने वाली नीलामी में, कई किसानों को नकदी में भुगतान में देरी का सामना करना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें घंटों तक परेशानी झेलनी पड़ी, जिससे वे केंद्र पर भुगतान के लिए अटके रहे।
किसानों ने बताया, “हम सोयाबीन लेकर आए थे जो नीलाम हो गई, लेकिन हमारा समय पर भुगतान नहीं हुआ। कई किसान केंद्र पर पहुंचे तो कोई नहीं मिला।
दोपहर को, 30 से 35 किसान मंडी में एकजुट होकर मंडी प्रबंधन के खिलाफ नारे लगाने लगे। वे मांग कर रहे हैं कि भुगतान में देरी के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो। प्रत्येक का 10 से 20 हजार रुपए तक का भुगतान दोपहर तक अटका रहा।
मंडी में उपजों की आवक इन दिनों कुछ कम हो रही है। वह उत्पाद जो आया था, उसकी नीलामी हो गई है। 6 जनवरी को बही पार्श्वनाथ मेला (पौष दशमी) और 7 जनवरी को रविवार के आने के कारण, मंडी में इन दिनों नीलामी नहीं होगी।
•पर्वतसिंह सिसौदिया, सचिव, कृषि उपज मंडी मंदसौर
मंदसौर मंडी में आवक में सुधार लेकिन भुगतान देरी से किसानों में आक्रोश Read More »
क्या आपने कभी सोचा है कि ड्रोन तकनीक कृषि में कैसे मदद कर सकती है?
भारत संकल्प यात्रा के तहत, जिलेभर में इस नए किसानी उपकरण का परिचय किया गया है। रविवार को लालघाटी में कृषि विभाग ने किसानों को ड्रोन तकनीक का डेमो दिया, जिससे किसान अब अधुनिक तकनीक का उपयोग करके अपनी फसलों को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं, इसका प्रचार किया जा रहा है।
जिले में अभी तक किसी भी किसान के पास ड्रोन नहीं है, लेकिन कई जगहों पर किसान इस नई तकनीक का उपयोग करके अपनी फसलों को बेहतर ढंग से धान कर रहे हैं। डेमो के माध्यम से, कृषि विभाग ने किसानों को ड्रोन टेक्नोलॉजी के फायदे बताए हैं और उन्हें इस नए यंत्र की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है।
ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी ने बताया कि यात्रा के दौरान किसानों को इस तकनीक से अवगत कराने का प्रयास किया जा रहा है और इसके लाभों को समझाया जा रहा है। किसान ड्रोन की कीमत 9 लाख 24 हजार रुपए है, लेकिन इसमें सब्सिडी के माध्यम से किसानों को भारी छूट मिल रही है। इससे किसान करीब 4 लाख से 5 लाख रुपए की छूट पर ड्रोन खरीद सकता है।
कृषकों के लिए ड्रोन एक उपयुक्त और कुशल टूल साबित हो रहा है, जिसके माध्यम से सुरक्षित और तेजी से खेतों का प्रबंधन किया जा सकता है। यूज़जीन से आए अधिकारी बता रहे हैं कि ड्रोन को मैपिंग के आधार पर सेट करके ऑटोमेटिक ऑपरेशन भी किया जा सकता है, जिससे 1 एकड़ पर 10 मिनट में छिड़काव किया जा सकता है। इसके साथ ही, दवाई के स्प्रे के साथ इस्तेमाल करने से फसल में वाइब्रेशन पैदा होता है, जिससे पत्तियों पर लगने वाली दवा मिट्टी में अच्छे से मिल जाती है। इसके परिणामस्वरूप, इल्ली और अन्य कीटाणुओं को भी नष्ट करने में सहायक होता है, जिससे फसल को अधिक सुरक्षित बनाए रखने में मदद मिलती है।”
ड्रोन तकनीक के माध्यम से, किसान अपनी फसलों का सही ढंग से देख सकता है और इसे बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सकता है। इससे वह अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकता है और उन्हें अच्छी तकनीक से समर्थन प्राप्त होगा। जिले के किसान भी इस नई तकनीक के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए उदाहरणीय प्रयासरत हैं और इससे उन्हें एक नई दिशा मिल सकती है।
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश के कृषि मजदूरों की आय में क्यों इतनी कमी है? जबकि कॉरपोरेट सेक्टर में वेतन में बढ़ोतरी की उम्मीद है, वहीं मजदूरों की आमदनी में बढ़ोतरी का सपना कहीं खो जाता जा रहा है।
देश के 20 करोड़ से ज्यादा कृषि मजदूरों की आय में सालाना 13 रुपए से भी कम की बढ़ोतरी हो रही है, यह बात हमें सोचने पर मजबूर कर देती है। पिछले पांच सालों में कृषि मजदूरों की दैनिक आमदनी में सिर्फ 64.63 रुपए की वृद्धि हुई है, जबकि गैर कृषि मजदूरों की आय में महज 61 रुपए का इजाफा हुआ है।
श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कृषि मजदूरों को रोजाना 400 रुपए से भी कम मिल रहे हैं, जो कि गंभीर है। मध्य प्रदेश में इनकी मजदूरी सालाना 6 रुपए बढ़ी है, राजस्थान में 14, बिहार में 13, हरियाणा में 7, गुजरात में 8 रुपए में भी स्थिति अच्छी नहीं है।
2018 में कृषि मजदूरों की दैनिक न्यूनतम आय 276.96 रुपए थी, जो अब 5 साल बाद 339.59 रुपए हो गई है, जबकि इसी दौरान गैर कृषि मजदूरों की आय में सिर्फ 61 रुपए की वृद्धि हुई है।
इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि क्या हम नहीं चाहते कि हमारे कृषि मजदूरों को भी विकास का हिस्सा बनाया जाए? क्या इस समस्या का समाधान निकालने के लिए हमें मिलकर काम करना चाहिए? या फिर हम ऐसे समय बर्बाद करते रहेंगे जब एक तरफ विकास हो रहा है और दूसरी तरफ मजदूरों की आय में महज कुछ रुपए की वृद्धि हो रही है?
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए हमें सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक स्तर पर समृद्धि की दिशा में कदम उठाना होगा, ताकि हमारे मजदूर बंधुओं को भी समृद्धि का हिस्सा मिल सके।
क्या कभी हमारे कृषि मजदूरों की आय में वृद्धि का सपना सच होगा Read More »
नागौर – क्या आपने कभी सोचा है कि रबी की फसलों में होने वाले रोगों और कीटाणुओं से निपटना कितना कठिन हो सकता है? नहीं ना? लेकिन यह सच है कि किसानों को इस समस्या का सामना करते हुए अपनी फसलों को सुरक्षित रखने के लिए किटनाशकों की आवश्यकता है, और यह बहुत बड़ी चुनौती है।
रबी की फसलों में होने वाले रोगों के साथ-साथ, बाजार में अवैध कीटनाशकों का व्यापार हो रहा है, जिससे किसानों को और भी ज्यादा नुकसान हो रहा है। कुछ समय पहले हुए एक घटना ने दिखाया कि गलत कीटनाशक का छिड़काव करने से मूंग की फसल जल गई, जिससे किसानों को बड़ा मुआवजा की बजाय नुकसान हुआ।
इस समस्या को लेकर चेतावनी दी है कि अवैध कीटनाशकों का उपयोग करने से बचने के लिए किसानों को कृषि विभाग द्वारा सुनिश्चित कीटनाशकों का उपयोग करने का सुझाव दिया जा रहा है। वह बताते हैं कि किसानों को कृषि विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले शिविरों में जाकर सही जानकारी हासिल करनी चाहिए ताकि उन्हें अच्छे कीटनाशक मिल सके।
कृषि अधिकारी शंकरराम सियाक
इस बढ़ते हुए समस्या का समाधान करने के लिए, कृषि अधिकारी शंकरराम सियाक ने इसबगोल और जीरा की फसलों में लगने वाले कीटाणुओं और रोगों के खिलाफ निम्नलिखित उपाय बताए हैं:
आपकी फसलें सुरक्षित कैसे रहेंगी: किसानों के लिए सही कीटनाशक का चयन और उपयोग Read More »
कृषि उपज मंडियों में तकनीकी बदलाव की राह पर एक नया कदम उत्सवभर रहा है! क्या आपने कभी सोचा है कि कैसे ई-मंडी एप से किसान घर बैठे ही अपनी उपज बेचते हैं? आइए जानें देवास और खंडवा के दल ने इस नए तकनीकी क्रांति को कैसे देखा और इसे अपने प्रदेश के किसानों के लिए कैसे लाभकारी बना रहा है।
गुरुवार को देवास और खंडवा से आए दल ने हरदा कृषि उपज मंडी को टॉप पर देखा और वहां किसानों को ऑनलाइन बाजार में कैसे अपनी उपज बेचने का सुझाव देखा। वहां ई-मंडी एप के माध्यम से किसान मोबाइल से घर बैठे ही प्रवेश पर्ची बना रहे थे। इस नए तकनीकी उत्सव से प्रेरित होकर दल के सदस्यों ने भी कहा कि इसे हमारे किसानों के लिए भी लागू किया जाएगा।
इस तकनीकी बदलाव के बारे में और भी रोचक है कि कैसे पीओएस मशीन से ऑनलाइन प्रवेश पर्ची बनाने में किसानों को और भी सुविधा हो रही है। टोकन को संभालने की जरुरत नहीं पड़ती, बस मोबाइल पर दिखा सकता है। इससे नीलामी के समय पर्ची का नंबर पीओएस मशीन में दर्ज किया जा सकता है और किसान की पूरी जानकारी मिलती है, जिससे उपज की बिक्री हो जाती है।
हरदा मंडी ई-मंडी परियोजना में प्रदेश की 8 मंडियों में शामिल है और हरदा मंडी में इस परियोजना का कार्य बहुत उत्कृष्ट रूप से हो रहा है। इसके माध्यम से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए लंबी लाइनों में इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है, जिससे उनका समय बचता है और लाइन में लगकर उन्हें बहुत आराम मिलता है।
संजीव श्रीवास्तव , मंडी सचिव,हरदा
यह नया प्रणाली न केवल किसानों के लिए समय की बचत कर रही है, बल्कि इससे पारदर्शिता भी बढ़ रही है। गुरुवार को उज्जैन के दल आने वाले हैं और हम देखेंगे कि वहां भी कैसे यह तकनीकी बदलाव किसानों के लाभ के लिए काम कर रहा है।
नीमच, एक प्रमुख कृषि क्षेत्र, अपने किसानों के लिए एक नई क्रांति का साकारात्मक मोमेंट में है। नई नीमच कृषि उपज मंडी के तीसरे चरण में हो रहे बड़े बदलावों ने कृषि समृद्धि की दिशा में एक नया मोड़ दिया है। इस मंडी में आने वाले नए वर्ष ने किसानों के लिए नए अवसर और सुविधाएं लेकर आये हैं, जिनसे उनकी जीवनशैली में सुधार होगा और उन्हें अधिक आत्मनिर्भर बनाए रखने में मदद होगी।
इस पोस्ट में, हम देखेंगे कैसे नई मंडी ने सुरक्षित और सुगम नीलामी, इलेक्ट्रिक तौल कांटा शिफ्ट, बैंक शाखा की सुविधा, नई शेड और गोदाम, नई उपज की नीलामी, और अन्य सुविधाएं किसानों के लिए कैसे लाभकारी हैं। इसके साथ ही, हम जानेंगे कैसे ये परिवर्तन क्षेत्र को नए आर्थिक और सामाजिक ऊर्जा के साथ भरा हुआ है।
नई मंडी परिसर में बैंक शाखा की शुरुआत होने के साथ, किसानों को अपनी आर्थिक लेन-देन की सुविधा मिलेगी। इसके साथ ही, एक कैंटीन भी शुरू हो गया है, जहां किसान 5 रुपए में भोजन कर सकते हैं।
मूंगफली की खेती मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होती है। इन राज्यों में खासतर से जून में बुआई की जाती है और अक्टूबर तक कटाई हो जाती है।
चंगेरा-डूंगलावदा स्थित नवीन मंडी परिसर में किसानों के लिए नाश्ते और भोजन के लिए कैंटीन की सुविधा आरंभ हो गई है। इसके साथ ही, कांटा को इलेक्ट्रिक तौल में शिफ्ट किया गया है। नए साल में, व्यापारियों और किसानों की मांग के अनुसार, प्रस्तावित अधिकांश सुविधाएं फरवरी माह तक शुरू की जाएंगी। लहसुन और मक्का की नीलामी भी फरवरी माह तक आरंभ होगी।
उमेश बसेड़िया शर्मा, सचिव, कृषि उपज मंडी समिति नीमच
नई कृषि उपज मंडी के नए चरण में एक नई सकारात्मक दिशा है। किसानों को नई सुविधाएं और अधिक विकल्प मिलने से, उनकी जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन होगा। इससे नई मंडी में व्यापारिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय आर्थिक विकास होगा।*
जय किसान, जय भारत!
नई नीमच कृषि उपज मंडी: लहसुन, मक्का मंडी होगी शिफ्ट और किसानों के लिए नई सुविधाएं Read More »
महंगाई के दौर में किसानों को नए और लाभकारी तरीके से फसल उगाने की जरूरत है। इस विचार में, मूंगफली की खेती उत्कृष्ट एक विकल्प है जो किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है। इस लेख में, हम जानेंगे कि मूंगफली की खेती का सही तरीका क्या है और कौन-कौन सी बातें इसमें ध्यान देना चाहिए।
मूंगफली की खेती मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होती है। इन राज्यों में खासतर से जून में बुआई की जाती है और अक्टूबर तक कटाई हो जाती है।
मूंगफली की खेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को ध्यानपूर्वक खेती करने के लिए उपायों को अपनाना चाहिए। सूर्य की अधिक रोशनी, उच्च जलवायु, और नए तकनीकी तरीकों का उपयोग करना चाहिए।
मूंगफली न केवल बाजार में बढ़ती मांग के कारण ही बल्कि इसके सेवन से हमारे शरीर को भी कई पोषण तत्व मिलते हैं। मैग्नीशियम, फोलेट, और विटामिन ई के साथ ही, मूंगफली प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत भी है। इसका सेवन हमें ऊर्जा प्रदान करता है और शारीरिक विकास में मदद करता है।
मूंगफली की खेती का सही तरीका जानना किसानों को नए और लाभकारी तरीके से फसल उगाने में मदद कर सकता है। इससे न केवल उन्हें अधिक मुनाफा हो सकता है, बल्कि बाजार में भी अधिक मूंगफली की मांग पूरी की जा सकती है। किसानों को नए तकनीकी तरीकों का उपयोग करके खेती में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए ताकि वे अधिक से अधिक उत्पादन कर सकें और अपने परिवार को सुरक्षित रख सकें।
मूंगफली की खेती: नए तरीके से किसानों को लाभ,जानिए उगाने का सही तरीका Read More »